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अपने उस गाँव में

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पीपल की छाँव में अपने उस गाँव में सकरी और उजड़ी पर दिलकश उन राहों में टूटे से घर में जलती दोपहर में छिपते छिपाते दिल के शहर में क्या अब भी कोई सुबह शाम से मिलती है राधा कोई क्या घनश्याम से मिलती है जमुना के कोई मुहाने की दस्तक होती है दिल के किबाड़ों पे अब तक इठलाते मौसम और मोहब्बत के किस्से कब तक अकेले सिलूँ मैं वो हिस्से तुम भी लिखो और मुझको बता दो जेठ की आंधी अब भी क्या तूफ़ान से मिलती है बड़े जतन कर सबरी क्या श्री राम से मिलती है वो मिलजुल के रहना सराफत का गहना हर एक आपदा को सदा साथ सहना वो ईद और दीवाली जो संग संग मनायीं यहाँ खीर पूरी वहाँ सेवइयां थी खायीं यहाँ मुझको वैसा न दिखता समर्पण टूटा हुआ सा अब मेरा है दर्पण वहाँ क्या अब भी गीता कभी कुरान से मिलती है सभी बंधन भूल आरती क्या अजान से मिलती है

जितना है याद तुम्हें

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जितना अब तक है याद तुम्हें, मैं उतना भूल आया हूँ तुमने हर राह दिये थे काँटे, मगर मैं फूल लाया हूँ जिन गलियों की अमर कहानी, जिनकी यादें पानी पानी कुछ बची है शब्दों में मेरे, उन गलियों की धूल लाया हूँ कुछ भ्रम थे मेरे टूट गए थे, जब अपने ही रूठ गए थे जब मैं बदला और वो बदले, कुछ बदले हुए उसूल लाया हूँ जो ख़त रह गए अनखोले से, जो बोल रहे अनबोले से जो बाकी है अब तक संदेशे, एसे ही फिजूल लाया हूँ जहाँ पढ़े थे प्रेम विषय पर, सब वारा था एक विजय पर एहसासों के ऐसे पावन, मैं यादों के स्कूल लाया हूँ जितना अब तक है याद तुम्हें, मैं उतना भूल आया हूँ तुमने हर राह दिये थे काँटे, मगर मैं फूल लाया हूँ