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तुझमे डूबना ......♥♥♥

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तुझमे डूबना ऐसा कि मनो फिर तमन्ना ही नहीं बचने की जब भी आता हूँ करीब तेरे जगती है आरजू बिखरने की मेरे लिये जीना मरना तड़पना आँसू सब बातें हैं जरा सी तेरे दीदार भर से मिट मिट कर मेरी हस्ती संबर जाती सुनो जाना सुनो जाना मैं तुझसे कोई सिकवा नहीं करता मुझे मालूम है इन्तेजार में तेरे शहर भर का हुजूम लगता मैं कोई रात में तेरी याद में बह गया जज्बात-ऐ-इश्क बस हूँ तू मूरत-ऐ-गुरूर मैं तेरे हुश्न अदायगी में ही खलस बस हूँ सबेरे की “किरन” मेरे दामन को छू कर वर्षों पहले गुजरी थी “अनुपम” की हर दास्ताँ तेरे दर्द-ऐ-जिक्र के बिना अधूरी थी.              अनुपम चौबे 

कोई काफिर समझता है.........

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कोई काफिर समझता है कोई काजी समझता है किनारा किसको कहते हैं ये बस माझी समझता है खोया है क्या पाया है क्या खोकर मैंने पाया है क्या कि मेरे रत जागों के राज को रब जी समझता है. कुछ आसान से शब्दों में लिख डाली कहानी है जो मेरे साथ है गुजरा वही मेरी जुबानी है मैं तुमसे क्या कहूँ मैं ही नहीं समझा मोहब्बत को मेरे एहसास के सावन में बस यादों का पानी है. कोई महफ़िल नहीं सजती जसन अच्छा नहीं लगता कोई भी साथ हो मेरे वो संग अच्छा नहीं लगता ज़माने भर कि खुशियों से कोई मतलब नहीं मुझको जो तुम न साथ हो मेरे तो कुछ अच्छा नहीं लगता. भरा जज्बात का दरिया मगर ये बह नहीं सकता किसी कि आबरू के वास्ते ये ढह नहीं सकता मुझे तुम छोड़ कर जिसको भी अपना अब बनाओगे मेरा वादा रहा मुझसे वो ज्यादा सह नहीं सकता.                               -अनुपम चौबे