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ye humara tumhara hindustan hai......

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जुर्म जुल्म और लूटा पाटी ये सब तो यहाँ आम है यहाँ हर एक जुबान वाला बिल्कुल बेजुबान है मंदिर मश्जिद गिरजाघर गुरूद्वारे ये सब मजहब बेचने के खातिर यहाँ लोगों की दुकान है बाजारों में बिकती यहाँ गीता और कुरान है यहाँ इंसान ही बेचता यहाँ कई इंसान है ये कुछ और नहीं यारों ये हमारा तुम्हारा हिंदुस्तान है लोगों को ठगना उनको छलना ये सियासतान है इतनी टूटन है जन जन में फिर भी गुणगान है फ़ालतू के किस्से हैं अब ये की एकता ही यहाँ शान है भीड़ है मौज है मस्ती है रंग रलियों के मेले हैं पर जाने कहाँ खो गया जो मेरा हिंदुस्तान है अरबों की संख्या में हैं पर भेड़ों सी अबाम है शायद इसी कारन हुक्कुमरान यहाँ सभी बेईमान है कौनसी चीज बाकी है यहाँ जिसपर हमे अभिमान है एक इतिहास ही बचा है जिसपर सदा गुमान है जहर दो गालियाँ दो अपनों को खुद ही लूटो ये मुल्क कहाँ ये तो एक खेल का मैदान है -      अनुपम चौबे

तुझमे डूबना ......♥♥♥

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तुझमे डूबना ऐसा कि मनो फिर तमन्ना ही नहीं बचने की जब भी आता हूँ करीब तेरे जगती है आरजू बिखरने की मेरे लिये जीना मरना तड़पना आँसू सब बातें हैं जरा सी तेरे दीदार भर से मिट मिट कर मेरी हस्ती संबर जाती सुनो जाना सुनो जाना मैं तुझसे कोई सिकवा नहीं करता मुझे मालूम है इन्तेजार में तेरे शहर भर का हुजूम लगता मैं कोई रात में तेरी याद में बह गया जज्बात-ऐ-इश्क बस हूँ तू मूरत-ऐ-गुरूर मैं तेरे हुश्न अदायगी में ही खलस बस हूँ सबेरे की “किरन” मेरे दामन को छू कर वर्षों पहले गुजरी थी “अनुपम” की हर दास्ताँ तेरे दर्द-ऐ-जिक्र के बिना अधूरी थी.              अनुपम चौबे 

कोई काफिर समझता है.........

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कोई काफिर समझता है कोई काजी समझता है किनारा किसको कहते हैं ये बस माझी समझता है खोया है क्या पाया है क्या खोकर मैंने पाया है क्या कि मेरे रत जागों के राज को रब जी समझता है. कुछ आसान से शब्दों में लिख डाली कहानी है जो मेरे साथ है गुजरा वही मेरी जुबानी है मैं तुमसे क्या कहूँ मैं ही नहीं समझा मोहब्बत को मेरे एहसास के सावन में बस यादों का पानी है. कोई महफ़िल नहीं सजती जसन अच्छा नहीं लगता कोई भी साथ हो मेरे वो संग अच्छा नहीं लगता ज़माने भर कि खुशियों से कोई मतलब नहीं मुझको जो तुम न साथ हो मेरे तो कुछ अच्छा नहीं लगता. भरा जज्बात का दरिया मगर ये बह नहीं सकता किसी कि आबरू के वास्ते ये ढह नहीं सकता मुझे तुम छोड़ कर जिसको भी अपना अब बनाओगे मेरा वादा रहा मुझसे वो ज्यादा सह नहीं सकता.                               -अनुपम चौबे 

वो कहती थी बाबा..........

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वो कहती थी बाबा , मैं न बोझ बनूँगी   कंधे से कन्धा , मिलाकर चलूंगी जमाने की चिंता , तू न कर बाबा   मैं ज़माने से आगे , निकल कर रहूंगी मुझे   भी हक़   है , जीने   का बाबा माँ   की ममता में , पलने का बाबा तेरे साथ मीलों , चलने का बाबा मुझे न मारो , मेरे आने के पहले मैं तुम्हारे सर , का ताज   बनूँगी जैसे तू पालेगा , बेसे पलूंगी .  वो कहती थी बाबा , मैं न बोझ बनूँगी कंधे से कन्धा , मिलाकर चलूंगी तू मेरी फ़िक्र , न कर ओ बाबा मैं खुद की हिफाजत , खुद ही करुँगी न चिंता कर , दहेज़ की बाबा   मैं ऐसी शादी , कभी न करुँगी तू सब्र कर , और मेरा हाथ पकढ़ बाबा मैं तेरा सहारा बनूँगी   मुझे जन्म लेने दे बाबा मैं तेरे आँगन में हर दम खिलूंगी   वो कहती थी बाबा , मैं न बोझ बनूँगी कंधे से कन्धा , मिलाकर चलूंगी मैं तेरा ही अंश हूँ बाबा , तेरे जैसी   ही बनूँगी तुझे भी नाज हो मुझपर , करम एसा करुँगी मैं बेटी हूँ तेरी बाबा , मगर